नमो आदिमाया भगवती । अनादि सिध्दमूळ प्रकृति ॥
महालक्ष्मी त्रीजगती । बया दार उघड, बया दार उघड ॥१॥
हरिहर तुझे ध्यान करिती । चंद्रसुर्य कानी तळपती ।
गगनी ते तारांगणे रुळती । तेवी भांगी भरिले मोती ॥
बया दार उघड ॥२॥
नवखंड पृथ्वी तुझी चोळी । सप्तपाताळी पाऊले गेली ॥
एकवीस स्वर्ग मुगूटी झळाळी । बया दार उघड ॥३॥
जगदंबा प्रसन्न झाली । भक्तिकवाडे उघडली शंख चंद्राकित शोभली रुपसुंदरा साबळी ।
कोटीचंद्र सूर्य प्रभा वेल्हाळी । एका जनार्दनी माऊली ।
करी कृपेची साउली । भक्त जनाकारणे संपूर्ण झाली ।
बया दार उघड, बया दार उघड ॥४॥
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