ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि
धर्माणि प्रथमान्यासन्|
ते हं नाकं महिमान: सचंत
यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने|
नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे
स मे कामान्कामकामाय मह्यम्|
कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु|
कुबेराय वैश्रवणाय |
महाराजाय नम: ॐ स्वस्ति
साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं
माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी
स्यात्सार्वभौम: सार्वायुष
आंतादापरार्धात्पृथिव्यै
समुद्रपर्यंता या एकराळिति
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत:
परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति
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